जानें : क्या है पूजा में आरती का महत्व और नियम

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जानें : क्या है पूजा में आरती का महत्व और नियम
Pooja ke Fayde, Aarti ka Mahatva aur niyam

हिंदू धर्म में पूजा में आरती का विशेष महत्व माना गया है. माना जाता है कि सच्चे मन और श्रृद्धा से की गई आरती बेहद कल्याणकारी होती है. आरती करने के कुछ नियम होते हैं जिनका पालन करना चाहिए। 

भगवान की पूजा से मन को शांति और आत्मा को तृप्ति मिलती है. पूजा-पाठ और साधना में इतनी शक्ति होती है कि ये सभी मनोकामना पूर्ण कर सकती है. सच्चे मन से की गई ईश्वर की आराधान चिंताओं को दूर कर एक असीम शांति का एहसास कराती है. लेकिन पूजा के दौरान ईश्वर की आराधना तब तक पूरी नहीं होती, जब तक भगवान की आरती ना की जाए. शास्त्रों में पूजा में आरती का खास महत्व बताया गया है. माना जाता है कि सच्चे मन और श्रृद्धा से की गई आरती बेहद कल्याणकारी होती है. आरती के दौरान गई जाने वाली स्तुति मन और वातावरण को शुद्ध और पवित्र कर देती है। 

पूजा के बाद क्यों की जाती है आरती, जानिए। 

हिन्दू धर्म में संध्योपासना के 5 प्रकार हैं - 1. संध्यावंदन, 2.प्रार्थना, 3. ध्यान, 4. कीर्तन और 5. पूजा-आरती। व्यक्ति की जिसमें जैसी श्रद्धा है, वह वैसा करता है। हम यहां बताएंगे पूजा और आरती के बारे में विस्तार से।

पूजा- पूजा किसी देवता या देवी की मूर्ति या उसके चित्र के समक्ष की जाती है। पूजा के बाद अंत में आरती होती है। पूजा करने करने और प्रसाद वितरण करने के वर्तमान में मनमाने तरीके विकसित हो चले हैं और कई अन्य आरतियां भी बना ली हैं, लेकिन व्यक्ति को पूजा के परंपरागत और शास्त्रसम्मत तरीके ही अपनाना चाहिए।

प्रत्येक देवता का अपना मंत्र होता है जिसके द्वारा उनका आह्वान किया जाता है। जिस भी देवता का पूजन किया जाता है उससे पूर्व पंचदेवों का पूजन किया जाना जरूरी है। स्नानादि कराने के बाद देवताओं को पत्र, पुष्प, धूप आदि अर्पित किए जाते हैं। प्रत्येक चीज अर्पित किए जाने के समय प्रत्येक का वैदिक मंत्र निर्धारित है।

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आरती- आरती को 'आरात्रिक' अथवा 'नीराजन' के नाम से भी पुकारा गया है। आराध्य के पूजन में जो कुछ भी त्रुटि या कमी रह जाती है, उसकी पूर्ति आरती करने से हो जाती है। साधारणतया 5 बत्तियों वाले दीप से आरती की जाती है जिसे 'पंचप्रदीप' कहा जाता है। इसके अलावा 1, 7 अथवा विषम संख्या के अधिक दीप जलाकर भी आरती करने का विधान है।

विशेष- दीपक की लौ की दिशा पूर्व की ओर रखने से आयु वृद्धि, पश्चिम की ओर दुःख वृद्धि, दक्षिण की ओर हानि और उत्तर की ओर रखने से धनलाभ होता है। लौ दीपक के मध्य लगाना शुभ फलदायी है। इसी प्रकार दीपक के चारों ओर लौ प्रज्वलित करना भी शुभ है।

गृहे लिंगद्वयं नाच्यं गणेशत्रितयं तथा। 

शंखद्वयं तथा सूर्यो नार्च्यो शक्तित्रयं तथा॥

द्वे चक्रे द्वारकायास्तु शालग्राम शिलाद्वयम्‌। 

तेषां तु पुजनेनैव उद्वेगं प्राप्नुयाद् गृही॥ 

अर्थ- घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य, तीन दुर्गा मूर्ति, दो गोमती चक्र और दो शालिग्राम की पूजा करने से गृहस्थ मनुष्य को अशांति होती है। 

मनुष्य के जीवन मे पूजा और आरती का प्रभाव। 

आरती के द्वारा व्यक्ति की भावनाएं तो पवित्र होती ही हैं, साथ ही आरती के दीये में जलने वाला गाय का घी तथा आरती के समय बजने वाला शंख वातावरण के हानिकारक कीटाणुओं का निर्मूलन करता है।

'विष्णुधर्मोत्तर पुराण' के अनुसार जो धूप, आरती को देखता है, वह अपनी कई पीढ़ियों का उद्धार करता है। घृत और कपूर के दीपक, अगर या धूप की बत्ती जलाना एवं हवन आदि की क्रिया वायुशोधन के लिए बहुत ही उपयोगी है। गंदे घरों की सफाई के लिए कपूर गंधक आदि का तीक्ष्ण धुआं भरना एक वैज्ञानिक प्रणाली है। पौष्टिक और सुगंधित वस्तुओं को जलाना तो दुहरा काम करता है। वायु की गर्मी और विषैलेपन को जलाने के साथ-साथ ऑक्सीजन वायु में रहने वाले सूक्ष्म तत्व ओजोन का भी सम्मिश्रण करता है, जो रक्त शुद्धि के लिए बहुत ही फायदेमंद है और मस्तिष्क को ठंडक प्रदान करती है। 

शंख-ध्वनि और घंटे-घड़ियाल पूजा के प्रधान अंग हैं। किसी देवता की पूजा शंख और घड़ियाल बजाए बिना नहीं होती। सन् 1928 में बर्लिन यूनिवर्सिटी ने शंख ध्वनि का अनुसंधान करके यह सिद्ध किया था कि शंख ध्वनि की शब्द लहरें बैक्टीरिया नामक संक्रामक रोग कीटों को मारने में उत्तम और सस्ती औषधि है। प्रति सेकंड 27 घनफुट वायु शक्ति के जोर से बजाया हुआ शंख 1200 फुट दूरी तक के बैक्टीरिया जंतुओं को मार डालता है और 2600 फुट तक के जंतु इस ध्वनि के कारण मूर्छित हो जाते हैं। बैक्टीरिया के अतिरिक्त हैजा, गर्दनतोड़ बुखार, पेट के कीड़े भी कुछ दूरी तक मरते हैं। ध्वनि विस्तारक स्थान के आस-पास का स्थान तो निःसंदेह निर्जंतु हो जाता है। मृगी, मूर्च्छा, कंठमाया और कोढ़ के रोगियों के अंदर शंख ध्वनि की जो प्रतिक्रिया होती है वह रोगनाशक कही जा सकती है। शिकागो मेयो अस्पताल के ख्यातिनाम डॉक्टर डी. ब्राइ ने 13 बधिर लोगों की श्रवणशक्ति को शंख ध्वनि की मदद से सचेत किया था।

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घंटा नाद से कई शारीरिक कष्ट कटते हैं और मानसिक उत्कर्ष होता है। घंटा नाद के कंपन मानसिक गतिविधि की दिशा एक ही ओर करके एक प्रकार की तन्द्रा और शांति प्रदान करते हैं। 

पूजन के उपचार |  Poojan ke Upchar

1. पांच उपचार, 2. दस उपचार, 3. सोलह उपचार।

1. पांच उपचार : गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य।

2. दस उपचार : पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र निवेदन, गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य।

3. सोलह उपचार : पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, ताम्बूल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार। पूजन के अंत में सांगता सिद्धि के लिए दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए। 

जानिये पूजन-आरती की सामग्री | Aarti ki Samagri

धूप बत्ती (अगरबत्ती), कपूर, केसर, चंदन, यज्ञोपवीत 5, कुंकु, चावल, अबीर, गुलाल, अभ्रक, हल्दी, आभूषण, नाड़ा, रुई, रोली, सिंदूर, सुपारी, पान के पत्ते, पुष्प माला, कमल गट्टे, धनिया खड़ा, सप्त मृत्तिका, सप्तधान्य, कुशा व दूर्वा, पंच मेवा, गंगा जल, शहद (मधु), शकर, घृत (शुद्ध घी), दही, दूध, ऋतु फल, नैवेद्य या मिष्ठान्न (पेड़ा, मालपुए इत्यादि), इलायची (छोटी), लौंग मौली, इत्र की शीशी, सिंहासन (चौकी, आसन), पंच पल्लव, (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते), पंचामृत, तुलसी दल, केले के पत्ते, औषधि, (जटामासी, शिलाजीत आदि), पाना (अथवा मूर्ति), गणेशजी की मूर्ति, अम्बिका की मूर्ति, सभी देवी-देवताओं को अर्पित करने हेतु वस्त्र, जल कलश (तांबे या मिट्टी का), सफेद कपड़ा (आधा मीटर), लाल कपड़ा (आधा मीटर), पंचरत्न (सामर्थ्य अनुसार), दीपक, बड़े दीपक के लिए तेल, बंदनवार, ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा), श्रीफल (नारियल), धान्य (चावल, गेहूं), पुष्प (गुलाब एवं लाल कमल), एक नई थैली में हल्दी की गांठ, खड़ा धनिया व दूर्वा आदि अर्घ्य पात्र सहित अन्य सभी पात्र।

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आरती की महिमा |  Aarti ki Mahima

अगर कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता, पूजा की विधि नहीं जानता लेकिन आरती कर लेता है, तो भगवान उसकी पूजा को पूर्ण रूप से स्वीकार कर लेते हैं।  आरती का धार्मिक महत्व होने के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी है. रोज प्रात:काल सुर-ताल के साथ आरती करना सेहत के लिए भी लाभदायक है।  गायन से शरीर का सिस्टम सक्रीय हो जाता है. इससे असीम ऊर्जा मिलती है। रक्त संचार संतुलित होता है।  आरती की थाल में रुई, घी, कपूर, फूल, चंदन होता है. रुई शुद्घ कपास होता है. इसमें किसी प्रकार की मिलावट नहीं होती है. इसी प्रकार घी भी दूध का मूल तत्व होता है. कपूर और चंदन भी शुद्घ और सात्विक पदार्थ है. जब रुई के साथ घी और कपूर की बाती जलाई जाती है, तो एक अद्भुत सुगंध वातावरण में फैल जाती है. इससे आस-पास के वातावरण में मौजूद नकारत्मक उर्जा भाग जाती है और वातावरण में सकारात्मक उर्जा का संचार होने लगता है। 

आरती का महत्व  |  Aarti ka Mahatva

- आरती के महत्व की चर्चा सर्वप्रथम "स्कन्द पुराण" में की गई है। 

- आरती हिन्दू धर्म की पूजा परंपरा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है।   

- किसी भी पूजा पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान के अंत में देवी-देवताओं की आरती की जाती है । 

- आरती की प्रक्रिया में एक थाल में ज्योति और कुछ विशेष वस्तुएं रखकर भगवान के सामने घुमाते हैं। 

- थाल में अलग-अलग वस्तुओं को रखने का अलग-अलग महत्व होता है। 

- लेकिन सबसे ज्यादा महत्व होता है आरती के साथ गाई जाने वाली स्तुति का. मान्यता है कि जितने भाव से आरती गाई जाती है, पूजा उतनी ही ज्यादा प्रभावशाली होती है। 

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आरती करने के नियम |  Aarti karne ka Niyam

- बिना पूजा उपासना, मंत्र जाप, प्रार्थना या भजन के सिर्फ आरती नहीं की जा सकती है । 

- हमेशा किसी पूजा या प्रार्थना की समाप्ति पर ही आरती करना श्रेष्ठ होता है। 

- आरती की थाल में कपूर या घी के दीपक दोनों से ही ज्योति प्रज्ज्वलित की जा सकती है। 

- अगर दीपक से आरती करें, तो ये पंचमुखी होना चाहिए। 

- इसके साथ पूजा के फूल और कुमकुम भी जरूर रखें। 

- आरती की थाल को इस प्रकार घुमाएं कि ॐ की आकृति बन सके। 

- आरती को भगवान के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, मुख पर एक बार और सम्पूर्ण शरीर पर सात बार घुमाना चाहिए। 

मनोकामना पूर्ति के लिए आरती | Manokamna poori karne ke liye aarti

- विष्णु जी की आरती में पीले फूल रखें। 

- देवी और हनुमान जी की आरती में लाल फूल रखें। 

- शिव जी की आरती में फूल के साथ बेल पत्र भी रखें।   

- गणेश जी की आरती में दूर्वा जरूर रखें। 

- घर में की जाने वाली नियमित आरती में पीले फूल रखना ही उत्तम होगा।

दिन में कितनी बार करनी चाहिए आरती

मंदिरों में भगवान की आरती 5 बार की जाती है। सबसे पहली आरती ब्रह्म मुहूर्त में भगवान को नींद से जगाने के लिए जाती है। दूसरी बार भगवान को स्‍नान कराने के बाद उनकी नजर उतारने के लिए आरती की जाती है। दोपहर में जब भगवान विश्राम के लिए जाते हैं, तब भी उनकी आरती की जाती है। शाम को जब भगवान विश्राम करने के बाद उठते हैं, एक बार तब भी आरती की जाती है। आखिरी आरती रात में भगवान को सुलाते वक्‍त की जाती है। घर पर आप दिनभर में 5 बार आरती न कर सकें तो केवल सुबह और रात में पूरी विधि से भगवान की आरती करके भी फल प्राप्‍त कर सकते हैं।

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