जाने ध्वनि-शक्ति के चमत्कार | Dhvani shakti ke Chamatkar

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ध्वनि-शक्ति के चमत्कार

ध्वनि : कितनी सूक्ष्म और व्यापक !


ध्वनि संसार की सर्वश्रेष्ठ शक्ति और सत्ता है। कितने ही मनीषियों ने तो विश्व-ब्रह्माण्ड को ध्वनि में समाहित माना है। उनके कथनानुसार, 'ध्वनि अखिल विश्व ब्रह्माण्ड का संक्षिप्त रूप है। कुछ ऐसा ही भाव 'नाद ब्रह्म' शब्द से भी प्रकट होता है।


जिस प्रकार किसी ठोस अथवा द्रव पदार्थ से, रासायनिक प्रक्रिया द्वारा उसमें निहित तत्वों को पृथक् करके उनका विश्लेषण किया जाता है, उसी प्रकार विशेषज्ञों ने ध्वनि में अन्तर्निहित शक्तियों की खोज करके, उनके प्रयोग द्वारा विभिन्न प्रभावों का विश्लेषण किया था। अपने परीक्षणों से आश्वस्त होकर उन्होंने उन प्रयोगों को सिद्धान्त' की संज्ञा दी। आगे चलकर दूसरे विद्वानों ने उन सिद्धान्तों को विकसित किया |


आज का चरम विकसित विज्ञान भी स्वीकार करता है कि ध्वनि की क्षमता अद्भुत है। इसके नियमित प्रयोग का प्रभाव सूक्ष्मतम उपकरणों को भी परास्त कर देता है। परीक्षण से आश्वस्त होकर वैज्ञानिकों ने ध्वनि-प्रभाव के अस्तित्व और उसकी सार्थकता को बड़े विस्तार से विवेचित किया है। इसी अवनि का एक जंग 'संगीत' है, जिसके प्रभाव की व्यापकता सर्वविदित है। यह भी ध्वनि का ही प्रभाव है कि आज विकसित देशों में शोर और उसकी प्रतिक्रिया को ध्वनि-प्रदूषण नाम देकर इस समस्या के निराकरण हेतु विविध प्रकार के उपाय खोजे जा रहे हैं। 'संगीत' की भांति 'मन्त्र' भी इसी ध्वनि का एक रूप है। संगीत का रूप स्कूल है विस्तारपूर्ण, किन्तु 'मन्त्र' सूक्ष्म होता है और विचित्र तथ्य यह है कि जो जितना ही सूक्ष्म है, वह उतना ही अधिक शक्ति-सम्पन्न और प्रभावशाली है। कितने हो एकाक्षरी मन्त्र ऐसे हैं कि उनका विधिवत प्रयोग किया जाय, तो ऐसा प्रभाव दृष्टिगोचर होता है कि उसके आगे नाभिकीय ऊर्जा मी तुच्छ प्रतीत होती है।


प्रामाणिक प्रयोग:


ध्वनि के विश्लेषण में एक विद्वान ने लिखा है---


...........जब शब्दों का उच्चारण होता है. तब उनसे वायु में कम्पन उत्पन्न होती है। यह कम्पन-तरंगे- वायु मण्डल में व्याप्त ईश्वर तत्व के माध्यम से कुछ ही क्षणों में ब्रह्माण्ड की परिक्रमा कर डालती हैं। इस परिक्रमा के दौरान जहाँ उन्हें अनुकूल तरंगे प्राप्त होती हैं, वे उनसे मिल जाती हैं, और इस प्रकार संयुक्त होने पर उनका एक बन जाता है। वह पुञ्ज बहुत ही शक्तिशाली होता है और उसके प्रभाव से साधक की इच्छित घटना अथवा कार्य का मूर्तरूप सुलभ हो जाता है। किन्तु यह सब इतनी शीघ्रता और सूक्ष्मता से होता है कि हम सोच भी नहीं पाते कि यह चमत्कार कैसे हुआ ?"


ध्वनि का प्रभाव संगीत में सर्वाधिक स्पष्ट होता है। संगीत के मेघ, मल्हार और दीपक, हिंडोल जैसे रागों तथा उनके प्रभाव का वर्णन अनेक ग्रन्थों में मिलता है। संगीत के ही एक पूरक अंग ( वाद्य ध्वनि ) के माध्यम से आज भी अनेक क्षेत्रों में चमत्कारपूर्ण कार्य सम्पादित हो रहे हैं। तज्जीर के एक विद्यालय में वनस्पति शास्त्रियों ने ध्वनि प्रभाव के माध्यम से वनस्पतिक उत्पादन ( पैदावार ) में वृद्धि के सफल प्रयोग कर दिखाये हैं।

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ध्वनि प्रभाव के द्वारा पशु-पक्षियों को सम्मोहित करने के कितने ही प्रसंग इतिहास में प्राप्त होते हैं। सम्राट विक्रमादित्य, उदयन, बाबा हरिदास, बैजू बावरा और तानसेन संगीत के क्षेत्र में देवताओं की भांति पूज्य हैं, कारण कि उन्होंने अपनी ध्वनि-शक्ति के प्रयोग में सिद्धि प्राप्त करली थी। जंगली जानवर भी संगीत से प्रभावित होते हैं। मृग का वीणा-प्रेम विख्यात है। समुद्री जीवों में डोल्फिन और सील जाति की मछलियाँ संगीत में मुग्ध होकर अपनी रक्षा करना भी भूल जाती हैं। यही नहीं, अनुभवों से पता चलता है कि सांप, चूहे तथा अन्य जीव-जन्तु भी ध्वनि से प्रभावित – स्तब्ध, भ्रमित, भीत अथवा वशीभूत हो जाते हैं। पशु मनो विज्ञान के प्रकाण्ड पण्डित जार्ज के रविन्सन का कहना है- पियानो की ध्वनि से मुग्ध होकर चूहे दिन में भी परम निर्भय होकर पास आ जाते हैं। कुस्ते, उल्लू और गरुड़ भी संगीत से प्रभावित होते हैं ।" इसी प्रकार नावें के विद्वान डॉ० हन्सन बताया है कि ध्वनि का आनन्द लेने में शहद की मक्खी का स्थान सर्वोच्च है। ने


जड़ पदार्थों को भी ध्वनि से प्रभावित होते देखा गया है। आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न नगर में एक बार बिना अन्य किसी साधन - पेट्रोल, बिजली, डीजल - के, केवल ध्वनि-प्रयोग द्वारा ही, एक मोटरकार को चलाने और इच्छानुसार रोकने का


अद्भुत प्रदर्शन किया गया था। ग्राहम और नील नाम के वे दो वैज्ञानिक, जो इस ध्वनि- चमत्कार के प्रदर्शक थे, आज भी मेलबोर्न के गौरव माने जाते हैं।


प्रथम विश्वयुद्ध ( 1914 1919 ) के समय जर्मनी में भी एक अद्भुत ध्वनि यन्त्र बनाया गया था, जिसकी शक्ति मृत्यु-किरण जैसी थी। उस यन्त्र से एक ऐसी विशिष्ट ध्वनि उत्पन्न की जाती थी और उसे ऐसे ढंग से वायु-मण्डल में प्रसारित किया जाता था कि इच्छित जन-समूह, उसके संस्पर्श मात्र केवल सुनने से ही-चेतना शून्य होकर अन्ततः निष्प्राण हो जाता था। विस्से-कहानियों में जिस 'मोत की आवाज' को हम काल्पनिक समझते हैं, जर्मन वैज्ञानिकों ने उसे प्रत्यक्ष कर दिखाया था।


चिकित्सा क्षेत्र में ध्वनि का प्रभाव सर्वविदित तो चुका है। विभिन्न प्रकार के दुस्साध्य रोगों के शमन में, जैसे-- घाव, नेत्र-विकार, स्नायुदोष, विक्षिप्तता तथा अन्य मस्तिष्क रोगो में, ध्वनि-प्रयोग ने अद्भुत प्रतिक्रिया दिखाई है। यहाँ तक कि ध्वनि का सम्बल लेकर ऑपरेशन जैसे जटिल कार्य भी सफलतापूर्वक सम्पन किये गये हैं। चिकित्सा जगत का नवीनतम आविष्कार 'अल्ट्रासाउण्ड' ध्वनि-विज्ञान पर ही आधारित है। इतना ही नहीं, अब तो वातानुकूल - शीत ताप नियन्त्रण- की प्रक्रिया में भी ध्वनि की उपादेयता स्वीकृत हो चुकी है।

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ध्वनि-चमत्कार, कुछ विशिष्ट प्रसंग


पिट्सवर्ग ( अमेरिका ) में राल्फ लारेन्स ही नामक चिकित्सक ने ध्वनि चिकित्सा प्रणाली को विकसित करने के लिए एक संस्था का सृजन किया है। यह संस्था ( चिकित्सालय ) संगीत ध्वनि के द्वारा असाध्य रोगों का उपचार करती है। हजारों व्यक्ति, जो विभिन्न व्याधियों से ग्रस्त रहते हैं, प्रतिवर्ष वहाँ जाकर स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। पोलियो, पक्षाघात, स्नायुदोष, मूकता जैसे जटिल और असाध्य रोग प्रायः वहाँ केवल ध्वनि प्रयोग से दूर कर दिये जाते हैं। उस सस्था का नाम है रिकॉडिंग फॉर रिलेक्जेशन, रिफ्लेक्शन, रिस्पॉन्स एण्ड रिकवरी संकेत रूप में उसे 'आर फोर आर' कहा जाता है।


भारत में भी ध्वनि के माध्यम से व्याधि-शमन होता रहा है। प्राचीन काल के सन्दर्भों को भले ही हम कपोल कल्पित कह लें, पर मध्ययुगीन इतिहास को कैसे नकार सकेंगे ? इतिहास में स्पष्ट रूप से वर्णित है कि रियासत रामपुर के नवाब लकवा रोग से पीड़ित थे और उन्हें इस कष्ट से मुक्त करने के लिए उस्ताद सिराज खाँ ( सूरज खाँ ) द्वारा राग 'जय जयवन्ती' की ध्वनि तरंगों का सफल प्रयोग किया गया था। चकेरी नरेश राजा राजसिंह अनिद्रा रोग से आकारत थे। अकबर-कालीन गायक वैजूबावरा ने उन्हें 'पूरिया' राग की ध्वनि तरंगों के स्पर्श द्वारा निद्रामग्न कर दिया था। चकेरी नरेश रोग मुक्त होकर सहज-स्वाभाविक निद्रा में सोने लगे थे।


लन्दन की एक महिला ने भी उस क्षेत्र में संसार को चमत्कृत किया है। वहीं की एक चित्रशाला 'लिटन बार्ट गैलरी में मिस वाट्स यूज नामक संगीतज्ञ स्त्री ने (जिसकी एक पुस्तक बहुत प्रसिद्ध है- बायस फीगर्स) विभिन्न स्वर-लहरियों के द्वारा अनेक प्रकार के चित्र बना दिये थे। इस सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि उस बाद्य-यन्त्र का निर्माण भी उसी ने किया था। जब वह अपने उस बाजे से विभिन्न प्रकार के स्वर निकालती, तो कैनवेस पर बिखरे सूखे रङ्गों के कण एक क्रम से एकत्र होकर समुद्री जीव-जन्तुओं, प्रस्तर खण्ड शैल-शिखर, सरिता-तट और वृक्ष चित्रों का रूप धारण कर लेते थे । आदि के


मियामी विश्वविद्यालय ( अमेरिका ) के वैज्ञानिक डॉक्टर रिचर्डस का नाम सङ्गीत प्रेम के क्षेत्र में प्रसिद्ध है। उनकी उपलब्धि भी चकित करने वाली थी- वे सङ्गीत ध्वनि से मुग्ध करके मछलियाँ पकड़ा करते थे। शिकारी लोग पाल का सहारा लेते हैं, पर डॉ० रिचर्डस नाद का आश्रय लेकर यह असम्भव जैसा कार्य सम्भव कर देते थे ।


विद्युतीय उपकरणों की श्रेणी में, इधर कॉलबेल की तरह एक ऐसा यन्त्र बना है, जो शटर दबाते ही सितार की तरह मीठी झन्नाहट उत्पन्न करता है। उस सन्नाहट में कुछ ऐसा आकर्षण है कि आसपास के सारे पतंगे, बाजे के ऊपर मंडराने लगते हैं— ठीक उसी प्रकार जैसे वे दीपक की लौ पर मंडराते हैं।

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फ्रांस देश भी, जो अपने वैभव-विलास के लिए यूरोप में चिरकाल से प्रसिद्ध है, इस क्षेत्र में पीछे नहीं रहा। वहाँ पेरिस को एक महिला ( मैडम किनलाङ्ग ) सङ्गीत के प्रति पूर्णतया समर्पित थी। वह भी वाद्य ध्वनि के सहारे विभिन्न प्रकार को आकृतियाँ बना देती थी। यहां तक कि वह किसी अन्य गायक के गीत पर भी सङ्गत करके अपनी बाद्य-ध्वनि से चित्र-निर्माण कर दिखाती थी। एक बार उसने इस प्रणाली से दूसरे गायक के गीत पर अपना बाजा बजाते हुए, मरियम और ईसा का चित्र बना दिया था। वह चित्र धार्मिक था- रोमन कैथोलिक ईसाई-समाज का । उस गीत का जैसा भाव था, ठीक वह उस चित्र में दृश्यमान हो गया था उन दिनों पेरिस में एक भारतीय युवक पढ़ रहा था। महिला ( कनलांग ) को ख्याति सुनकर वह भी उसके पास गया और ध्वनि चमत्कार देखने की इच्छा प्रकट को महिला के कहने पर उसने संस्कृत भाषा में एक छन्द गाया। वह छन्द 'भैरवाष्टक' का अङ्ग था। युवक गाने में तन्मय था और महिला अपना वाद्य-यन्त्र बजाने में कुछ मिनटों बाद ही, लोगों ने देखा कि कैनवेस पर बिखरे हुए कण किसी क्रम से एकत्र होने लगे हैं। थोड़ी देर में उस छन्द के देवता कालभैरव का स्पष्ट चित्र अद्भुत हो गया।


भैरव देवता अपनी जिस भयङ्कर मुद्रा के लिए प्रसिद्ध हैं, वह चित्र के चेहरे पर प्रत्यक्ष थी। यही नहीं, उनका वाहन कुत्ता भी पास ही खड़ा था ।


नितान्त जड पदार्थ भी ध्वनि से संवेदित होते हैं, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण इंग्लैण्ड का एक विश्यात दर्शनीय स्थल है-स्टोनहेम्स यहाँ प्राकृतिक रूप से परस्पर जुड़े हुए पत्थरों के टुकड़े विभिन्न प्रकार की आकृतियों में खड़े हैं। न जाने फैमा रहस्य है कि वायु में उत्पन्न कोई भी स्वर लहरी उन पत्थरों को सवेदित कर देती है और वे परवराने लगते है। उस समय यह प्रतीत होता है कि बस अब ये सारे पत्थर लड़खड़ाकर गिर जाएंगे। अति मध्यम स्वर में कोई स्वर लहरी वहाँ अविराम गति से गूंजती रहे, तो निश्चित है कि सारे पत्थर बिखर जाएंगे। कई बार के प्रयोगों से जब सत्य प्रमाणित हो गया, तब वहाँ गाने-बजाने, किसी भी प्रकार की सङ्गीत ध्वनि उत्पन्न करने को पूर्णतया निषेध कर दिया गया। इस कानून को बहीं बड़ी कठोरता से लागू किया गया है और संलानियों के मध्य रक्षक वर्ग घूम-घूमकर निगरानी करता रहता है। पत्थरों में संवेदनशीलता और ध्वनि प्रभाव के चमत्कार का यह अद्भुत उदाहरण है।

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स्थूल की अपेक्षा सूक्ष्म की शक्ति को आज के भौतिक विज्ञानी भी स्वीकार करते हैं। बारूद और उसकी गैस की प्रभाव भिन्नता सर्वविदित है। ठीक यही सिद्धान्त मन्त्र-विज्ञान में भी चलता है। ध्वनि स्थूल है और मन्त्र उसके रूप होने के कारण सिद्धान्ततः अत्यधिक शक्तिशाली होते हैं। भारतीय मनीषियों ने कई पीड़ियाँ बिताकर अपने अनुभवों को समुन्नत सुनिश्चित किया और उन्हें 'मन्त्र' के रूप में उपादेय घोषित किया था। मन्त्र-विद्या के विकास का यही वैज्ञानिक बाधार रहा है कि ध्वनि ( शब्द ) की शक्ति अन्य भौतिक पदार्थों की शक्ति से कहीं अधिक सूक्ष्म और विभेदक होती है। आज के अणु-सिद्धान्त की उत्पत्ति में यही ध्यनि-सिद्धान्त मुख्य आधार रहा है। ध्वनि तरङ्गों के माध्यम से किसी भी व्यक्ति अथवा वस्तु को, वह कहीं भी हो, प्रभावित किया जा सकता है। मन्त्र द्वारा सूक्ष्मता से ध्वनि-प्रेषण करके, अखिल ब्रह्माण्ड में कोई भी स्थिति उत्पन्न करने की क्षमता भारत के प्राचीन मन्त्र मर्मज्ञों ने अजित करली थी। पर इसका भौतिक-साथ उन्होंने कभी नहीं उठाया। वे सदैव अध्यात्म के उपासक थे। 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' उनका जीवन-दर्शन था, इसलिए अपनी अद्भुत क्षमता का, अपनी का उपयोग वे कभी अपने लिए नहीं करते थे । ईर्ष्या, द्रोप, क्रोध, कलह और छल-उप से वे सर्वथा अछूते थे। व्यक्तिगत स्वार्थों की क्षुद्रता उन्हें स्पर्श नहीं कर पायी थी । वे मन्त्र-विद्या का उपयोग केवल अध्यात्म-साधना तथा लोक के लिए ही करते थे ।


हम देखते हैं कि विद्युद्गति को भी परास्त करके ध्वनि, अखिल विश्व में व्याप्त हो जाती है। आज का रेडियो यन्त्र वायुमण्डल में समाहित ध्वनियों को पकड़ने का सशक्त साधन है। अपनी यान्त्रिक रचना के आधार पर वह हजारों मोल दूर बोले गये शब्द को तत्क्षण पकड़कर हमें सुना देता है। वायुमण्डल में ध्वनि के अस्तित्व और उसकी गतिशीलता का यह प्रबल प्रमाण है। यह भी निश्चित हो चुका है कि ध्वनि कभी नष्ट नहीं होती, वह वायुमण्डल में विलीन होकर सदैव विद्यमान रहती है। रेडियो के ध्वनि-ग्राहक सिद्धान्त को कुछ और विकसित करने के प्रयास में कई एक वैज्ञानिक यहाँ तक कृतनिश्चित हैं कि वे एक दिन विभिन्न देशों के ऐतिहासिक पुरुषों- राम, कृष्ण, अजुन, ईसा, मरियम, सीजर, विक्रमादित्य, पृथ्वी राज, अकबर और नैपोलियन के वाक्य जन-सामान्य को सुना देंगे। और, यह तो निश्चित है ही कि यदि ऐसा हो सका तो बाल्मीकि, व्यास, कालिदास, होमर, मिल्टन, तुलसीदास और सूर का काव्य भी उन्हीं के कण्ठ-स्वर में सुना जा सकेगा।


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