महाशिवरात्रि | Maha Shivratri भारतीयों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारम्भ इसी दिन से हुआ।
happy maha shivratri, lord shiva maha shivratri,maha shivratri images,happy maha shivratri wishes,
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भारत सहित पूरी दुनिया में महाशिवरात्रि का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।महाशिवरात्रि से सम्बन्धित कई पौराणिक कथाएँ है:
Maha Shivratri ki kai pauranik katha
समुद्र मन्थन की कथा | Samudra Manthan ki Katha
समुद्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित था, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्माण्ड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कण्ठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित हो उठे थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था। इस कारण से भगवान शिव 'नीलकंठ' के नाम से प्रसिद्ध हैं। उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। इस प्रकार, भगवान भगवान शिव के चिन्तन में एक सतर्कता रखी। शिव का आनन्द लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाने। जैसे सुबह हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया। तब से इस दिन, भक्त उपवास करते है।
(nextPage)
शिकारी की कथा | Shikari ki Katha
एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।
शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।
पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब मार लेना। शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।
कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिन्ता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था।
उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊँगी। इस समय मुझे शिकारी हँसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरन्त लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।
मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्षपर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृगविनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई!
यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलम्ब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊँगा।
मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था।
उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।
थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किन्तु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवम् सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई।
उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवम् दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।
(nextPage)
महाशिवरात्रि का अनुष्ठान | Maha Shivratri ki Pooja
इस अवसर पर भगवान शिव का अभिषेक अनेकों प्रकार से किया जाता है। जलाभिषेक : जल से और दुग्धाभिषेक : दूध से। बहुत जल्दी सुबह-सुबह भगवान शिव के मन्दिरों पर भक्तों, जवान और बूढ़ों का ताँता लग जाता है वे सभी पारम्परिक शिवलिंग पूजा करने के लिए जाते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं। भक्त सूर्योदय के समय पवित्र स्थानों पर स्नान करते हैं जैसे गंगा, या (खजुराहो के शिव सागर में) या किसी अन्य पवित्र जल स्रोत में।
यह शुद्धि के अनुष्ठान हैं, जो सभी हिन्दू त्योहारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। पवित्र स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहने जाते हैं, भक्त शिवलिंग स्नान करने के लिए मन्दिर में पानी का बर्तन ले जाते हैं महिलाओं और पुरुषों दोनों सूर्य, विष्णु और शिव की प्रार्थना करते हैं मन्दिरों में घण्टी और "शंकर जी की जय" ध्वनि गूँजती है। भक्त शिवलिंग की तीन या सात बार परिक्रमा करते हैं और फिर शिवलिंग पर पानी या दूध भी डालते हैं। हलाकि इन सभी अनुष्ठान का वर्णन हमारे पवित्र शास्त्रों में कहीं पर भी नही है, जिससे यह शास्त्रानुकूल साधना नही है।
शिव पुराण के अनुसार, महाशिवरात्रि पूजा में छह वस्तुओं को अवश्य शामिल करना चाहिए।
- शिव लिंग का पानी, दूध और शहद के साथ अभिषेक। बेर या बेल के पत्ते जो आत्मा की शुद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- सिंदूर का पेस्ट स्नान के बाद शिव लिंग को लगाया जाता है। यह पुण्य का प्रतिनिधित्व करता है।
- फल, जो दीर्घायु और इच्छाओं की सन्तुष्टि को दर्शाते हैं।
- जलती धूप, धन, उपज (अनाज)
- दीपक जो ज्ञान की प्राप्ति के लिए अनुकूल है।
- और पान के पत्ते जो सांसारिक सुखों के साथ सन्तोष अंकन करते हैं।
अभिषेक में निम्न वस्तुओं का प्रयोग नहीं किया जाता है:
- तुलसी के पत्ते
- हल्दी
- चंपा और केतकी के फूल
भगवान शिव की अन्य पारम्परिक पूजा
बारह ज्योतिर्लिंग (प्रकाश के लिंग) जो पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केन्द्र हैं। वे स्वयम्भू के रूप में जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है "स्वयं उत्पन्न"। बारह स्थानों पर बारह ज्योर्तिलिंग स्थापित हैं।
1. सोमनाथ यह शिवलिंग गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित है।
2. श्री शैल मल्लिकार्जुन मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित है श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग।
3. महाकाल उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहाँ शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था।
4. ॐ कारेश्वर मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदाने देने हुए यहां प्रकट हुए थे शिवजी। जहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया।
5. नागेश्वर गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।
6. बैजनाथ बिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग।
7. भीमाशंकर महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग।
8. त्र्यंम्बकेश्वर नासिक (महाराष्ट्र) से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।
9. घृष्णेश्वर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गाँव में स्थापित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग।
10. केदारनाथ हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग। हरिद्वार से 150 पर मिल दूरी पर स्थित है।
11. काशी विश्वनाथ बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।
12. रामेश्वरम् त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग।
(nextPage)
भारत में महाशिवरात्रि | Bharat ki Maha Shivratri
मध्य भारत मे मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि
मध्य भारत में शिव अनुयायियों की एक बड़ी संख्या है। महाकालेश्वर मंदिर, (उज्जैन) सबसे सम्माननीय भगवान शिव का मंदिर है जहाँ हर वर्ष शिव भक्तों की एक बड़ी मण्डली महा शिवरात्रि के दिन पूजा-अर्चना के लिए आती है। जेओनरा, सिवनी के मठ मंदिर में व जबलपुर के तिलवाड़ा घाट नामक दो अन्य स्थानों पर यह त्योहार बहुत धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। दमोह जिले के बांदकपुर धाम में भी इस दिन लाखों लोगों का जमावड़ा रहता है।
कश्मीर मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि
कश्मीरी ब्राह्मणों के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। यह शिव और पार्वती के विवाह के रूप में हर घर में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के उत्सव के 3-4 दिन पहले यह शुरू हो जाता है और उसके दो दिन बाद तक जारी रहता है।
दक्षिण भारत मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना के सभी मंदिरों में व्यापक रूप से मनाई जाती है।
आइये जानते है महाशिवरात्रि श्लोक व मंत्र के बारे मे। | Mahashivratri Shlok aur mantra
महाशिवरात्रि में शिव पंचाक्षर स्तोत्र को जपने से आपके सारे कष्टों का नाश हो सकता है। इसकी रचना आदि शंकराचार्य ने की थी जो शिव महिमा का गुणगान करती है।
नमः शिवाय के पांचों अक्षर: न, म, शि, वा और य से शंकराचार्य ने पांच श्लोकों की रचना की है जिससे शिवस्वरूप के बारे मे ज्ञात हैं। कहा जाता है कि शिव जी की अराधना सच्चे मन से जो करता है उसके सारे कष्ट प्रभु हर लेते है।
(nextPage)
आइए जानते हैं सभी श्लोकों का अर्थ... | Jantey hai Shlok ka arth
श्लोक: | Shlok
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै न काराय नमः शिवायः॥
अर्थात: शिव जिनके कंठ मे सांपों का माला है, जो तीन नेत्रों वाले हैं। भस्म से जिनका अनुलेपन हुआ, दिशांए जिनके वस्त्र है. उस महेश्वर 'न' कार स्वरूप शिव को हार्दिक नमस्कार है।
श्लोक: | Shlok
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय। मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै म काराय नमः शिवायः॥
अर्थात: जिस शिव की अर्चना गंगाजल और चन्दन से हुई। जिनकी पूजा मन्दार के फूल व अन्य पुष्पों से हुई है, उन नन्दी के अधिपति और प्रमथगणों के स्वामी महेश्वर 'म' स्वरूप भोले शिव को सदैव नमस्कार है।
श्लोक: | Shlok
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नमः शिवायः॥
अर्थात: शिव जो कल्याणकारी है। पार्वती माता को प्रसन्न करने के लिए खुद सूर्य स्वरूप हैं। राजा दक्ष के यज्ञ के जो नाशक हैं, जिनकी झंडे में बैल की निशानी है, उन शोभाशाली श्री नीलकण्ठ 'शि' कार स्वरूप भोल शिव को नमस्कार है।
श्लोक:| Shlok
वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नमः शिवायः॥
अर्थात: असुर से लेकर वशिष्ठ, अगस्त्य व गौतम आदि श्रेष्ठ ऋषि मुनियों ने तथा इंद्र देव ने भी जिनके आगे मस्तक झुकाए है, शिव की पूजा की है. जिनके चंद्रमा, सूर्य और अग्नि जैसे प्रलयकारी नेत्र हैं. उन 'व' कार स्वरूप शिव को सदैव नमस्कार है।
श्लोक: | Shlok
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नमः शिवायः॥
अर्थात: शिव जो यक्षरूप धारण करने वाले हैं, जो जटाधारी, व जिनके हाथ में उनका पिनाक नामक धनुष है. जो दिव्य है, सनातन पुरुष हैं. उन दिगम्बर शिव के 'य' कार स्वरूप को नमस्कार है।
श्लोक: | Shlok
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
अर्थात: जो सदैव शिव के समक्ष इस पवित्र पंचाक्षर मंत्र का जाप करता है, उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है. साथ ही साथ वह शिवजी के साथ आनंदित जीवनयापन करता है।
श्लोक: | Shlok
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं । विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं ॥
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं ॥1॥
अर्थात: हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और सबके स्वामी शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूं। निज स्वरूप में स्थित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन, आकाश रूप शिवजी मैं आपको भजता हूं।
श्लोक: | Shlok
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं । गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशं ।
करालं महाकालकालं कृपालं । गुणागारसंसारपारं नतोऽहं ॥2॥
अर्थात: निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत) वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूं।
(nextPage)
श्लोक: | Shlok
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं । मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरं ॥ स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगंगा । लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा ॥3॥
अर्थात: जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिर पर सुंदर नदी गंगाजी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा और गले में सर्प सुशोभित है.
श्लोक: | Shlok
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं । प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं ॥ मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं । प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥4॥
अर्थात: जिनके कानों में कुंडल शोभा पा रहे हैं. सुन्दर भृकुटी और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्न मुख, नीलकण्ठ और दयालु हैं. सिंह चर्म का वस्त्र धारण किए और मुण्डमाल पहने हैं, उन सबके प्यारे और सबके नाथ श्रीशंकरजी को मैं भजता हूं।
श्लोक: | Shlok
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं । अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ॥
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं । भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं ॥5॥
अर्थात: प्रचंड, श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किए, भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।
श्लोक: | Shlok
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी । सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥ चिदानन्दसंदोह मोहापहारी । प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥
अर्थात: कलाओं से परे, कल्याण स्वरूप, प्रलय करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुरासुर के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथ डालनेवाले हे प्रभो, प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए।
श्लोक: | Shlok
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं । भजन्तीह लोके परे वा नराणां ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं । प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥
अर्थात: जब तक मनुष्य पार्वतीजी के पति के चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इहलोक में, न ही परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और अनके कष्टों का भी नाश नहीं होता है. अत: हे समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइए।
श्लोक: | Shlok
न जानामि योगं जपं नैव पूजां । नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यं ॥
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं । प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥
अर्थात: मैं न तो योग जानता हूं, न जप और न पूजा ही. हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आप को ही नमस्कार करता हूं. हे प्रभो! बुढ़ापा तथा जन्म के दु:ख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दु:खों से रक्षा कीजिए. हे शम्भो, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
श्लोक: | Shlok
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥9॥
श्लोक: | Shlok
सदुपायकथास्वपण्डितो हृदये दु:खशरेण खण्डित:।
शशिखण्डमण्डनं शरणं यामि शरण्यमीरम् ॥
अर्थात: हे शम्भो! मेरा हृदय दु:ख रूपीबाण से पीडित है, और मैं इस दु:ख को दूर करने वाले किसी उत्तम उपाय को भी नहीं जानता हूँ अतएव चन्द्रकला व शिखण्ड मयूरपिच्छ का आभूषण बनाने वाले, शरणागत के रक्षक परमेश्वर आपकी शरण में हूँ। अर्थात् आप ही मुझे इस भयंकर संसार के दु:ख से दूर करें।
श्लोक: | Shlok
महत: परित: प्रसर्पतस्तमसो दर्शनभेदिनो भिदे।
दिननाथ इव स्वतेजसा हृदयव्योम्नि मनागुदेहि न:॥
अर्थात: हे शम्भो हमारे हृदय आकाश में, आप सूर्य की तरह अपने तेज से चारों ओर घिरे हुए, ज्ञानदृष्टि को रोकने वाले, इस अज्ञानान्ध्कार को दूर करने के लिए प्रकट हो जाओ। ;सूर्य जिस प्रकार अपने तेज–प्रकाश से रात्रिा जन्य अन्ध्कार को दूर कर देता है, उसी प्रकार आप भी यदि हमारे हृदय में प्रकट रहेंगे अर्थात् हमारे यान में रहेंगे तो जरूर हमारा भी कुछ न कुछ अज्ञानान्ध्कार दूर हो जायेगा।
श्लोक: | Shlok
||इति श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम्||
श्लोक: | Shlok
सविषोप्यमृतायते भवाछवमुण्डाभरणोपि पावन:।
भव एव भवान्तक: सतां समदृखिवषमेक्षणोपि सन् ॥
अर्थात: हे शम्भो! आप विषसहित होते हुए भी अमृत के समान हैं, शवों के मुण्डों से सुशोभित होते हुए भी पवित्रा हैं। स्वयं ;जगत् के उत्पादकद्ध भव होते हुए भी, सज्जनों के या सन्तों के ;सांसारिक बन्ध्नद्ध को दूर करने वाले हैं। विषमनेत्रा अर्थात् तीन नेत्रा ;सूर्य, अग्नि, चन्द्र नेत्राद्ध वाले होते हुए भी समदृष्टि अर्थात् पक्षपात रहित हैं।
श्लोक: | Shlok
सविषैरिव भोगपगैखवषयैरेभिरलं परिक्षतम्।
अमृतैरिव संभ्रमेण मामभिषिाशु दयावलोकनै: ॥
अर्थात: विषधरी भारी साँपों के समान इन सांसारिक विषयों ने मुझे भयभीत कर रखा है, अत: इनसे मैं परेशान हूँ। कृपया अमृत के समान ;जीवनदायक अथवा मुत्तिफसाध्कद्ध अपने कृपाकटाक्षों के अवलोकन से मुझे बचाइए।
श्लोक: | Shlok
दृशं विदधमि क करोम्यनुतिशमि कथं भयाकुल:।
नु तिश्सि रक्ष रक्ष मामयि शम्भो शरणागतोस्मि ते ॥
अर्थात: हे शम्भो! मैं अब किध्र देखूँ ;दृि लगाऊँद्ध क्या करूँ, भयभीत मैं कैसे यहां रहूँ? हे प्रभो! आप कहाँ हैं? मेरी रक्षा करें। मैं ;अबद्ध आपकी हीं शरण में हूँ ।
(nextPage)
श्लोक: | Shlok
श्रीशैलशृंगे विबुधातिसंगे तुलाद्रितुंगेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ॥
अर्थात: ऊंचाई की तुलना में जो अन्य पर्वतों से ऊंचा है, जिसमें देवताओं का समागम होता रहता है, ऐसे श्रीशैलश्रृंग में जो प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं, और जो संसार सागर को पार करने के लिए सेतु के समान हैं, उन्हीं एकमात्र श्री मल्लिकार्जुन भगवान् को मैं नमस्कार करता हूँ।
श्लोक: | Shlok
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम् ॥
अर्थात: जो भगवान् शंकर संतजनों को मोक्ष प्रदान करने के लिए अवन्तिकापुरी उज्जैन में अवतार धारण किए हैं, अकाल मृत्यु से बचने के लिए उन देवों के भी देव महाकाल नाम से विख्यात महादेव जी को मैं नमस्कार करता हूँ ।
श्लोक: | Shlok
कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय।
सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे् ॥
अर्थात: जो भगवान् शंकर सज्जनों को इस संसार सागर से पार उतारने के लिए कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम में स्थित मान्धता नगरी में सदा निवास करते हैं, उन्हीं अद्वितीय ‘ओंकारेश्वर’ नाम से प्रसिद्ध श्री शिव की मैं स्तुति करता हूँ ।
श्लोक: | Shlok
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम्। सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥
अर्थात: जो भगवान् शंकर पूर्वोत्तर दिशा में चिताभूमि वैद्यनाथ धाम के अन्दर सदा ही पार्वती सहित विराजमान हैं, और देवता व दानव जिनके चरणकमलों की आराधना करते हैं, उन्हीं ‘श्री वैद्यनाथ’ नाम से विख्यात शिव को मैं प्रणाम करता हूँ ।
श्लोक: | Shlok
महत: परित: प्रसर्पतस्तमसो दर्शनभेदिनो भिदे।
दिननाथ इव स्वतेजसा हृदयव्योम्नि मनागुदेहि न:॥
अर्थात: जो भगवान् शंकर दक्षिण दिशा में स्थित अत्यन्त रमणीय सदंग नामक नगर में अनेक प्रकार के भोगों तथा नाना आभूषणों विभूषित हैं, जो एकमात्र सुन्दर पराभक्ति तथा मुक्ति को प्रदान करते है, उन्हीं अद्वितीय श्री नागनाथ नामक शिव की मैं शरण में जाता हूँ ।
श्लोक: | Shlok
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः। सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥
अर्थात: जो भगवान् शंकर पर्वतराज हिमालय के समीप मन्दाकिनी के तट पर स्थित केदारखण्ड नामक श्रृंग में निवास करते हैं, तथा मुनीश्वरों के द्वारा हमेशा पूजित हैं, देवता-असुर, यक्ष-किन्नर व नाग आदि भी जिनकी हमेशा पूजा किया करते हैं, उन्हीं अद्वितीय कल्याणकारी केदारनाथ नामक शिव की मैं स्तुति करता हूँ ।
श्लोक: | Shlok
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरीतीरपवित्रदेशे।
यद्दर्शनात् पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्रयम्बकमीशमीडे ॥
अर्थात: जो भगवान् शंकर गोदावरी नदी के पवित्र तट पर स्थित स्वच्छ सह्याद्रिपर्वत के शिखर पर निवास करते हैं, जिनके दर्शन से शीघ्र सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, उन्हीं त्रयम्बकेश्वर भगवान् की मैं स्तुति करता हूँ ।
श्लोक: | Shlok
सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यै:।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥
अर्थात: जो भगवान् शंकर सुन्दर ताम्रपर्णी नामक नदी व समुद्र के संगम में श्री रामचन्द्र जी के द्वारा अनेक बाणों से या वानरों द्वारा पुल बांधकर स्थापित किये गये हैं, उन्हीं श्रीरामेश्वर नामक शिव को मैं नियम से प्रणाम करता हूँ ।
श्लोक: | Shlok
यं डाकिनीशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि ॥
अर्थात: जो भगवान् शंकर डाकिनी और शाकिनी समुदाय में प्रेतों के द्वारा सदैव सेवित होते हैं, अथवा डाकिनी नामक स्थान में प्रेतों द्वारा जो सेवित होते हैं, उन्हीं भक्तहितकारी भीमशंकर नाम से प्रसिद्ध शिव को मैं प्रणाम करता हूँ ।
(nextPage)
श्लोक: | Shlok
सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्। वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥
अर्थात: जो भगवान् शंकर आनन्दवन काशी क्षेत्र में आनन्दपूर्वक निवास करते हैं, जो परमानन्द के निधान एवं आदिकारण हैं, और जो पाप समूह का नाश करने वाले हैं, ऐसे अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की मैं शरण में जाता हूँ ।
श्लोक: | Shlok
इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।
वन्दे महोदारतरं स्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये ॥
अर्थात: जो इलापुर के सुरम्य मंदिर में विराजमान होकर समस्त जगत के आराधनीय हो रहे हैं, जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है, मैं उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान शिव की शरण में जाता हूँ ।
श्लोक: | Shlok
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिंगम् निर्मलभासितशोभितलिंगम्। जन्मजदु:खविनाशकलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥
अर्थात: मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग ब्रह्मा, विष्णु व अन्य देवताओं से भी पूजित है, जो निर्मल कान्ति से सुशोभित है, तथा जन्म-जरा आदि दु:खों को दूर करने वाला है।
श्लोक: | Shlok
देवमुनिप्रवरार्चितलिंगम् कामदहं करुणाकरलिंगम्। रावणदर्पविनाशनलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥
अर्थात: मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग देवताओं व श्रेष्ठ मुनियों द्वारा पूजित है, जिसने क्रोधानल से कामदेव को भस्म कर दिया, जो दया का सागर है और जिसने लंकापति रावण के भी दर्प का नाश किया है।
श्लोक: | Shlok
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिंगम् बुद्धिविवर्द्धनकारणलिंगम् । सिद्धसुरासुरवन्दितलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥
अर्थात: मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो सभी प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों से लिप्त है, अथवा सुगन्धयुक्त नाना द्रव्यों से पूजित है, और जिसका पूजन व भजन बुद्धि के विकास में एकमात्र कारण है तथा जिसकी पूजा सिद्ध, देव व दानव हमेशा करते हैं।
श्लोक: | Shlok
कनकमहामणिभूषितलिंगम् फणिपतिवेष्टितशोभितलिंगम्। दक्षसुयज्ञविनाशनलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥
अर्थात: मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग सुवर्ण व महामणियों से भूषित है, जो नागराज वासुकि से वेष्टित है, और जिसने दक्षप्रजापति के यज्ञ का नाश किया है।
श्लोक: | Shlok
कुंकुमचन्दनलेपितलिंगम् पंकजहारसुशोभितलिंगम्। संचितपापविनाशनलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥
अर्थात: मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग केशरयुक्त चन्दन से लिप्त है और कमल के पुष्पों के हार से सुशोभित है, जिस लिंग के अर्चन व भजन से पूर्वजन्म या जन्म-जन्मान्तरों के सञ्चित अर्थात् एकत्रित हुए पापकर्म नष्ट हो जाते हैं, अथवा समुदाय रूप में उपस्थित हुए जो आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक त्रिविध ताप हैं, वे नष्ट हो जाते हैं।
श्लोक: | Shlok
देवगणार्चितसेवितलिंगम् भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम्। दिनकरकोटिप्रभाकरलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥
अर्थात: मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग देवगणों से पूजित तथा भावना और भक्ति से सेवित है, और जिस लिंग की प्रभा–कान्ति या चमक करोड़ों सूर्यों की तरह है।
श्लोक: | Shlok
अष्टदलोपरिवेष्टितलिंगम् सर्वसमुद्भवकारणलिंगम्। अष्टदरिद्रविनाशितलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥
अर्थात: मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग अष्टदल कमल के ऊपर विराजमान है, और जो सम्पूर्ण जीव–जगत् के उत्पत्ति का कारण है, तथा जिस लिंग की अर्चना से अणिमा महिमा आदि के अभाव में होने वाला आठ प्रकार का जो दारिद्र्य है, वह भी नष्ट हो जाता है।
(nextPage)
श्लोक: | Shlok
सुरगुरुसुरवरपूजितलिंगम् सुरवनपुष्पसदार्चितलिंगम्।
परात्परं परमात्मकलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥
अर्थात: मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग बृहस्पति तथा देवश्रेष्ठों से पूजित है, और जिस लिंग की पूजा देववन अर्थात् नन्दनवन के पुष्पों से की जाती है, जो भगवान् सदाशिव का लिंग स्थूल–दृश्यमान इस जगत् से परे जो अव्यक्त–प्रकृति है, उससे भी परे सूक्ष्म अथवा व्यापक है, अत: वही सबका वन्दनीय तथा अतिशय प्रिय आत्मा है।
श्लोक: | Shlok
नमस्ते भगवान रुद्र भास्करामित तेजसे ।
नमो भवाय देवाय रसायाम्बुमयात्मने ॥
अर्थात: हे भगवान ! हे रुद्र ! आपका तेज अनगिनत सूर्योंके तेज समान है । रसरूप, जलमय विग्रहवाले हे भवदेव ! आपको नमस्कार है ।
श्लोक: | Shlok
शर्वाय क्षितिरूपाय नंदीसुरभये नमः ।
ईशाय वसवे सुभ्यं नमः स्पर्शमयात्मने ॥
अर्थात: नंदी और सुरभि कामधेनु भी आपके ही प्रतिरूप हैं । पृथ्वीको धारण करनेवाले हे शर्वदेव ! आपको नमस्कार है । हे वायुरुपधारी, वसुरुपधारी आपको नमस्कार है ।
श्लोक: | Shlok
तस्मै नम: परमकारणकारणाय दिप्तोज्ज्वलज्ज्वलित पिङ्गललोचनाय । नागेन्द्रहारकृतकुण्डलभूषणाय ब्रह्मेन्द्रविष्णुवरदाय नम: शिवाय ॥
अर्थात: जो शिव कारणों के भी परम कारण हैं, अति दिप्यमान उज्ज्वल एवं पिङ्गल नेत्रोंवाले हैं, सर्पोंके हार-कुण्डल आदि से भूषित हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्रादि को भी वर देनेवालें हैं, उन शिवजी को नमस्कार करता हूँ ।
श्लोक: | Shlok
पशूनां पतये चैव पावकायातितेजसे ।
भीमाय व्योम रूपाय शब्द मात्राय ते नमः ॥
अर्थात: अग्निरुप तेज व पशुपति रूपवाले हे देव ! आपको नमस्कार है । शब्द तन्मात्रा से युक्त आकाश रूपवाले हे भीमदेव ! आपको नमस्कार है ।
श्लोक: | Shlok
उग्रायोग्रास्वरूपाय यजमानात्मने नमः ।
महाशिवाय सोमाय नमस्त्वमृत मूर्तये ॥
अर्थात: हे उग्ररूपधारी यजमान सदृश आपको नमस्कार है । सोमरूप अमृतमूर्ति हे महादेव ! आपको नमस्कार है ।
(nextPage)
श्लोक: | Shlok
श्रीमत्प्रसन्नशशिपन्नगभूषणाय शैलेन्द्रजावदनचुम्बितलोचनाय । कैलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय लोकत्रयार्तिहरणाय नम: शिवाय ॥
अर्थात: जो निर्मल चन्द्रकला तथा सर्पोंद्वारा ही भूषित एवं शोभायमान हैं, गिरिराजग्गुमारी अपने मुखसे जिनके लोचनोंका चुम्बन करती हैं, कैलास एवं महेन्द्रगिरि जिनके निवासस्थान हैं तथा जो त्रिलोकीके दु:खको दूर करनेवाले हैं, उन शिवजीको नमस्कार करता हूँ ।
श्लोक: | Shlok
पद्मावदातमणिकुण्डलगोवृषाय कृष्णागरुप्रचुरचन्दनचर्चिताय । भस्मानुषक्तविकचोत्पलमल्लिकाय नीलाब्जकण्ठसदृशाय नम: शिवाय ॥
अर्थात: जो स्वच्छ पद्मरागमणि के कुण्डलों से किरणों की वर्षा करनेवाले हैं, अगरू तथा चन्दन से चर्चित तथा भस्म, प्रफुल्लित कमल और जूही से सुशोभित हैं, ऐसे नीलकमलसदृश कण्ठवाले शिव को नमस्कार है ।
श्लोक: | Shlok
लम्बत्स पिङ्गल जटा मुकुटोत्कटाय दंष्ट्राकरालविकटोत्कटभैरवाय । व्याघ्राजिनाम्बरधराय मनोहराय त्रिलोकनाथनमिताय नम: शिवाय ॥
अर्थात: जो लटकती हुई पिङ्गवर्ण जटाओं के सहित मुकुट धारण करने से जो उत्कट जान पडते हैं तीक्ष्ण दाढोंके कारण जो अति विकट और भयानक प्रतीत होते हैं, साथ ही व्याघ्रचर्म धारण किए हुए हैं तथा अति मनोहर हैं तथा तीनों लोकों के अधीश्वर भी जिनके चरणों में झुकते हैं, उन शिवजी को नमस्कार करता हूँ ।
श्लोक: | Shlok
दक्षप्रजापतिमहाखनाशनाय क्षिप्रं महात्रिपुरदानवघातनाय । ब्रह्मोर्जितोर्ध्वगक्रोटिनिकृंतनाय योगाय योगनमिताय नम: शिवाय ॥
अर्थात: जो दक्षप्रजापति के महायज्ञ को ध्वंस करनेवाले हैं, जिन्होने परंविकट त्रिपुरासुर का तत्काल अन्त कर दिया था तथा जिन्होंने दर्पयुक्त ब्रह्मा के ऊर्ध्वमुख को काट दिया था, उन शिवजी को नमस्कार करता हूँ ।
श्लोक: | Shlok
संसारसृष्टिघटनापरिवर्तनाय रक्ष: पिशाचगणसिद्धसमाकुलाय । सिद्धोरगग्रहगणेन्द्रनिषेविताय शार्दूलचर्मवसनाय नम: शिवाय ॥
अर्थात: जो संसार में घटित होनेवाले समस्त घटनाओं में परिवर्तन करने में सक्षम हैं, जो राक्षस, पिशाच से लेकर सिद्धगणों द्वारा घिरे रहते हैं | सिद्ध, सर्प, ग्रह-गण एवं इन्द्रादि से सेवित हैं तथा जो बाघाम्बर धारण किए हुए हैं, उन शिवजी को नमस्कार करता हूँ ।
श्लोक: | Shlok
भस्माङ्गरागकृतरूपमनोहराय सौम्यावदातवनमाश्रितमाश्रिताय । गौरीकटाक्षनयनार्धनिरीक्षणाय गोक्षीरधारधवलाय नम: शिवाय ॥
अर्थात: जिन्होंने भस्म लेपद्वारा शृंगार किया हुआ है, जो अति शांत एवं सुन्दर वनका आश्रय करनेवालों के वश में हैं, जिनका श्री पार्वतीजी कटाक्ष नेत्रोंद्वारा निरिक्षण करती हैं तथा जिनका गोदुग्ध की धाराके समान श्वेत वर्ण है, उन शिवजी को नमस्कार करता हूँ ।
श्लोक: | Shlok
आदित्य सोम वरुणानिलसेविताय यज्ञाग्निहोत्रवरधूमनिकेतनाय । ऋक्सामवेदमुनिभि: स्तुतिसंयुताय गोपाय गोपनमिताय नम: शिवाय ॥
अर्थात: जो सूर्य, चन्द्र, वरूण और पवनद्वारा सेवित हैं, यज्ञ एवं अग्निहोत्र धूममें जिनका निवास है, ऋक-सामादि, वेद तथा मुनिजन जिनकी स्तुति करते हैं, उन नन्दीश्वरपूजित गौओं का पालन करनेवाले शिवजी को नमस्कार करता हूँ ।
(getButton) #text=(Indian festival) #icon=(link) #color=(#2339bd)