हरियाली तीज Hariyali Teej

Hindi Kavita

हरियाली तीज  |  Hariyali Teej का उत्सव श्रावण मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है। यह उत्सव महिलाओं का उत्सव है। सावन में जब सम्पूर्ण प्रकृति हरी चादर से आच्छादित होती है उस अवसर पर महिलाओं के मन मयूर नृत्य करने लगते हैं। hariyali teej kab hai,happy hariyali teej wishes,wishes whatsapp hariyali teej,happy hariyali teej
वृक्ष की शाखाओं में झूले पड़ जाते हैं।पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कजली तीज के रूप में मनाते हैं। सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत काफी मायने रखता है। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चारों तरफ हरियाली होने के कारण इसे हरियाली तीज कहते हैं। इस मौके पर महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और खुशियां मनाती हैं।


हरियाली तीज पर कविता | Hariyali Teej per Kavita

☘हरियाली तीज सत्यार्थ

श्रावण मास में खिल जाती है

प्रकर्ति हरित रूप पुष्प हर पात।

स्वच्छ नभ् मंडल अलौकिक होता

इंद्रधनुष सप्त रंगी मुस्काता स्व द्रष्टात।।

रच जाती स्वयं नवरंगों

और इठलाती मद्य मोहनी चमन।

धरा चमकती पड़ सूर्य प्रभा

चल रूकती ले मद गंघ पवन।।

यौवन नारित्त्व बन भाषित होता

हर नवयौवना नार।

नर में भी प्रस्फुटित होता

प्राकृतिक कामनाएं ले उपहार।।

यही अभिव्यक्ति होती

मैं और तू है एक दूजे पूर्ण।

मिलन का अभिसार गीत गाता

चन्द्र रश्मि धरा बहाता परिपूर्ण।।

झरने नदी चर्मोउत्कृष् पे होते

चंचलता तोड़ती नव मोड़ती तट।

समुन्द्र उन्हें आमन्त्रण देता

आ मिल जा मुझमें खोल ह्रदय के पट।।

बिजली गिरती बादल फटते

घोर गर्जन है ऋतु प्रसन्नता।

प्रलय संग नव सृजन होता

अद्धभुत नाँद श्रवण अभिनवता।।

मोर नाचते काम पंखों संग

कूह पीहू टर चिन जग ध्वनि।

धुल जाते प्रकर्ति माँ हाथों

स्नान कर पग से ले कर कँगनी।।

नवयौवन प्रतीक हरित है

उससे बढ़ता रंग महत्त्व।

इसी रचना को हाथ अंग रचाती

नवयौवना बना प्रेम प्रतीक महत्त्व।।

जो अंदर है वही है बाहर

प्रेम कामनाये महंदी रंग खिलती।

अंग प्रत्यंग महाभाव को करता

प्रकट महंदी रच आनंद को मिलती।।

अर्थ मिल काम संग धर्म है

यही तीन तीज है अर्थ।

मोक्ष प्रकर्ति विषय नही है

जीवन जीवंत प्रेम हरित है अर्थ।।

यो हरियाली तीज है कहते

यो मनाते इसे मध्य हर वर्ष।

यही जानना ज्ञान व्रत है

जो जाने पाये जीवन प्रेम नवहर्ष।।

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हरियाली तीज व्रतार्थ:

तीन झूट ताज्य् करें

पति पत्नी छल कपट।

दूजे की निंदा नही

और दूजे धन झपट।।

ईश्वर इस जगत में

बटा है तीन तत्व।

पुरुष स्त्री और बीज

यही तीज अर्थ ज्ञान गत्व।।

ईश्वर तीन स्वरूप में

इच्छा क्रिया ज्ञान।

हरी ईश्वर याली संसार है

यही हरियाली तीज अर्थ मान।।

तीन काल तीन गुण

तीन देव तीन देवी।

ईश्वर जीव माया तीन

गुरु शिष्य विद्या तीन खेवी।।

जो इन तीन ज्ञान जानता

और सदा करता इन्हें पालन।

मनवांछित वरदान मिले

हरियाली तीज व्रत सिद्ध फल पालन।।

(स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी)

हरियाली तीज पर्व की मुख़्य रस्म |  Hariyali Teej ki mukhya Rasam

इस उत्सव को हम मेंहदी रस्म भी कह सकते हैं क्योंकि इस दिन महिलाये अपने हाथों, कलाइयों और पैरों आदि पर विभिन्न कलात्मक रीति से मेंहदी रचाती हैं। इसलिए हम इसे मेहंदी पर्व भी कह सकते हैं।इस दिन सुहागिन महिलाएं मेहँदी रचाने के पश्चात् अपने कुल की बुजुर्ग महिलाओं से आशीर्वाद लेना भी एक परम्परा है।

हरियाली तीज उत्सव में सहभागिता | Hariyali Teej Utsav

इस उत्सव में कुमारी कन्याओं से लेकर विवाहित युवा और वृद्ध महिलाएं सम्मिलित होती हैं। नव विवाहित युवतियां प्रथम सावन में मायके आकर इस हरियाली तीज में सम्मिलित होने की परम्परा है। हर‌ियाली तीज के द‌िन सुहागन स्‍त्र‌ियां हरे रंग का श्रृंगार करती हैं। इसके पीछे धार्म‌िक कारण के साथ ही वैज्ञान‌िक कारण भी शाम‌िल है। मेंहदी सुहाग का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। इसलिए महिलाएं सुहाग पर्व में मेंहदी जरूर लगाती है। इसकी शीतल तासीर प्रेम और उमंग को संतुलन प्रदान करने का भी काम करती है। ऐसा माना जाता है कि सावन में काम की भावना बढ़ जाती है। मेंहदी इस भावना को नियंत्रित करता है। हरियाली तीज का नियम है कि क्रोध को मन में नहीं आने दें। मेंहदी का औषधीय गुण इसमें महिलाओं की मदद करता है। इस व्रत में सास और बड़े नई दुल्हन को वस्‍त्र, हरी चूड़‌ियां, श्रृंगार सामग्री और म‌िठाइयां भेंट करती हैं। इनका उद्देश्य होता है दुल्हन का श्रृंगार और सुहाग हमेशा बना रहे और वंश की वृद्ध‌ि हो

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हरियाली तीज का पौराणिक महत्व |  hariyali Teej ka Mahatva

इस दिन माता पार्वती सैकड़ों वर्षों की साधना के पश्चात् भगवान् शिव से मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए १०७ बार जन्म लिया फिर भी माता को पति के रूप में शिव प्राप्त न हो सके। १०८ वीं बार माता पार्वती ने जब जन्म लिया तब श्रावण मास की शुक्ल पक्ष तृतीय को भगवन शिव पति रूप में प्राप हो सके। तभी से इस व्रत का प्रारम्भ हुआ। इस अवसर पर जो सुहागन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके शिव -पार्वती की पूजा करती हैं उनका सुहाग लम्बी अवधि तक बना रहता है।साथ ही देवी पार्वती के कहने पर श‌िव जी ने आशीर्वाद द‌िया क‌ि जो भी कुंवारी कन्या इस व्रत को रखेगी और श‌िव पार्वती की पूजा करेगी उनके व‌िवाह में आने वाली बाधाएं दूर होंगी साथ ही योग्य वर की प्राप्त‌ि होगी। सुहागन स्‍त्र‌ियों को इस व्रत से सौभाग्य की प्राप्त‌ि होगी और लंबे समय तक पत‌ि के साथ वैवाह‌िक जीवन का सुख प्राप्त करेगी। इसल‌िए कुंवारी और सुहागन दोनों ही इस व्रत का रखती हैं।

हरियाली तीज पर्व का मुख्य केंद्र

हरियाली तीज का उत्सव भारत के अनेक भागों में मनाया जाता है, परन्तु राजस्थान में विशेषकर जयपुर में इसका विशेष महत्त्व है

हरियाली तीज के रीति रिवाज़

स्त्रियाँ अपने हाथों पर त्योहार विशेष को ध्यान में रखते हुए भिन्न-भिन्न प्रकार की मेहंदी लगाती हैं। मेहंदी रचे हाथों से जब वह झूले की रस्सी पकड़ कर झूला झूलती हैं तो यह दृश्य बड़ा ही मनोहारी लगता हैं मानो सुहागिन आकाश को छूने चली हैं। इस दिन सुहागिन स्त्रियाँ सुहागी पकड़कर सास के पांव छूकर उन्हें देती हैं। यदि सास न हो तो स्वयं से बड़ों को अर्थात जेठानी या किसी वृद्धा को देती हैं। इस दिन कहीं-कहीं स्त्रियाँ पैरों में आलता भी लगाती हैं जो सुहाग का चिह्न माना जाता है। हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं और माता पार्वती की सवारी बड़े धूमधाम से निकाली जाती है। वास्तव में देखा जाए तो हरियाली तीज कोई धार्मिक त्योहार नहीं वरन् महिलाओं के लिए एकत्र होने का एक उत्सव है। नवविवाहित लड़कियों के लिए विवाह के पश्चात् पड़ने वाले पहले सावन के त्योहार का विशेष महत्त्व होता है।

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हरियाली तीज का पौराणिक महत्त्व

१. श्रावण शुक्ल तृतीया (तीज) के दिन भगवती पार्वती सौ वर्षों की तपस्या साधना के बाद भगवान शिव से मिली थीं।

२. माँ पार्वती का इस दिन पूजन - आह्वान विवाहित स्त्री - पुरुष के जीवन में हर्ष प्रदान करता है।

३. समस्त उत्तर भारत में तीज पर्व बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है।

३. इसे श्रावणी तीज, हरियाली तीज तथा कजली तीज भी कहते हैं।

४. बुन्देलखंड के जालौन, झाँसी, दनिया, महोबा, ओरछा आदि क्षेत्रों में इसे हरियाली तीज के नाम से व्रतोत्सव के रूप में मनाते हैं।

५. पूर्वी उत्तर प्रदेश, बनारस, मिर्ज़ापुर, देवलि, गोरखपुर, जौनपुर, सुल्तानपुर आदि ज़िलों में इसे कजली तीज के रूप में मनाने की परम्परा है।

६. लोकगायन की एक प्रसिद्ध शैली भी इसी नाम से प्रसिद्ध हो गई है, जिसे 'कजली' कहते हैं।

७. राजस्थान के लोगों के लिए त्योहार ही जीवन का सार है।

८. तीज के आगमन के हर्ष में मोर हर्षित हो नृत्य करने लगते हैं।

९. स्त्रियाँ उद्यानों में लगे रस्सी के झूले में झूलकर प्रसन्नचित् होती हैं तथा सुरीले गीतों से वातावरण गूँज उठता है।

१०. तीज सावन (जुलाई–अगस्त) के महीने में शुक्लपक्ष के तीसरे दिन मनाई जाती है।

हरियाली तीज उत्सव की परम्परा |  Hariyali Teej utsav ki Parampara

तीज भारत के अनेक भागों में मनाई जाती है, परन्तु राजस्थान की राजधानी जयपुर में इसका विशेष महत्त्व है। तीज का आगमन भीषण ग्रीष्म ऋतु के बाद पुनर्जीवन व पुनर्शक्ति के रूप में होता है। यदि इस दिन वर्षा हो, तो यह और भी स्मरणीय हो उठती है। लोग तीज जुलूस में ठंडी बौछार की कामना करते हैं। ग्रीष्म ऋतु के समाप्त होने पर काले - कजरारे मेघों को आकाश में घुमड़ता देखकर पावस के प्रारम्भ में पपीहे की पुकार और वर्षा की फुहार से आभ्यंतर आनन्दित हो उठता है। ऐसे में भारतीय लोक जीवन कजली या हरियाली तीज का पर्वोत्सव मनाता है। आसमान में घुमड़ती काली घटाओं के कारण ही इस त्योहार या पर्व को 'कजली' या 'कज्जली तीज' तथा पूरी प्रकृति में हरियाली के कारण 'तीज' के नाम से जाना जाता है।

इस त्योहार पर लड़कियों को ससुराल से पीहर बुला लिया जाता है। विवाह के पश्चात् पहला सावन आने पर लड़की को ससुराल में नहीं छोड़ा जाता है। नवविवाहिता लड़की की ससुराल से इस त्योहार पर सिंजारा भेजा जाता है। हरियाली तीज से एक दिन पहले सिंजारा मनाया जाता है। इस दिन नवविवाहिता लड़की की ससुराल से वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी और मिठाई भेजी जाती है। इस दिन मेहंदी लगाने का विशेष महत्त्व है।

१. साज–श्रृंगार और आनन्द का उत्सव

२. तीज पूर्ण रूप से स्त्रियों का उत्सव है।

३. स्त्रियाँ आकर्षक परिधानों से सुसज्जित हो भगवती पार्वती की उपासना करती हैं।

४. राजस्थान में जिन कन्याओं की सगाई हो गई होती है, उन्हें अपने भविष्य के सास - ससुर से एक दिन पहले ही भेंट मिलती है।

५. इस भेंट को स्थानीय भाषा में "शिंझार" (श्रृंगार) कहते हैं।

६. शिंझार में अनेक वस्तुएँ होती हैं। जैसे - मेंहदी, लाख की चूड़ियाँ, लहरिया नामक विशेष वेश–भूषा, जिसे बाँधकर रंगा जाता है तथा एक मिष्टान जिसे "घेवर" कहते हैं।

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हरियाली तीज उत्सव की विशेष रस्म-बया

१. इसमें अनेक भेंट वस्तुएँ होती हैं, जिसमें वस्त्र व मिष्ठान होते हैं। इसे माँ अपनी विवाहित पुत्री को भेजती है। पूजा के बाद 'बया' को सास को सुपुर्द कर दिया जाता है।

२. पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी यदि कन्या ससुराल में है, तो मायके से तथा यदि मायके में है, तो ससुराल से मिष्ठान, कपड़े आदि भेजने की परम्परा है। इसे स्थानीय भाषा में 'तीज' की भेंट कहा जाता है।

३. राजस्थान हो या पूर्वी उत्तर प्रदेश प्रायः नवविवाहिता युवतियों को सावन में ससुराल से मायके बुला लेने की परम्परा है।

४. सभी विवाहिताएँ इस दिन विशेष रूप से श्रृंगार करती हैं।

५. सायंकाल बन ठनकर सरोवर के किनारे उत्सव मनाती हैं और उद्यानों में झूला झूलते हुए कजली के गीत गाती हैं।

हरियाली तीज पर मेंहदी रचाने का उत्सव |  Hariyali Teej per mehndi

इस अवसर पर नवयुवतियाँ हाथों में मेंहदी रचाती हैं। तीज के गीत हाथों में मेंहदी लगाते हुए गाये जाते हैं। समूचा वातावरण श्रृंगार से अभिभूत हो उठता है। इस त्योहार की सबसे बड़ी विशेषता है, महिलाओं का हाथों पर विभिन्न प्रकार से बेलबूटे बनाकर मेंहदी रचाना। पैरों में आलता लगाना, महिलाओं के सुहाग की निशानी है। राजस्थान में हाथों व पाँवों में भी विवाहिताएँ मेंहदी रचाती हैं। जिसे "मेंहदी - माँडना" कहते हैं। इस दिन राजस्थानी बालाएँ दूर देश गए अपने पति के तीज पर आने की कामना करती हैं। जो कि उनके लोकगीतों में भी मुखरित होता है। तीज पर तीन बातें त्यागने का विधान है 

१. पति से छल–कपट

२. झूठ एवं दुर्व्यवहार करना

३. परनिन्दा

हरियाली तीज मल्हार और झूलों का उत्सव

तीज के दिन का विशेष कार्य होता है, खुले स्थान पर बड़े–बड़े वृक्षों की शाखाओं पर झूला बाँधना। झूला स्त्रियों के लिए बहुत ही मनभावन अनुभव है। मल्हार गाते हुए मेंहदी रचे हुए हाथों से रस्सी पकड़े झूलना एक अनूठा अनुभव ही तो है। सावन में तीज पर झूले न लगें, तो सावन क्या? तीज के कुछ दिन पूर्व से ही पेड़ों की डालियों पर, घर की छत की कड़ों या बरामदे में कड़ों में झूले पड़ जाते हैं और नारियाँ, सखी - सहेलियों के संग सज - संवरकर लोकगीत, कजरी आदि गाते हुए झूला झूलती हैं। पूरा वातावरण ही उनके गीतों के मधुर लयबद्ध सुरों से रसमय, गीतमय और संगीतमय हो उठता है।

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जयपुर का तीज माता उत्सव और जुलूस | Jaipur Teej Mata Utsav

१. जयपुर के राजाओं के समय में पार्वती जी की प्रतिमा, जिसे 'तीज माता' कहते हैं, को एक जुलूस उत्सव में दो दिन तक ले जाया जाता था।

२. उत्सव से कुछ पूर्व प्रतिमा में दोबारा से रंगकारी की जाती है तथा त्योहार वाले दिन इसे नवपरिधानों से सजाया जाता है।

३. पारम्परिक आभूषणों से सुसज्जित राजपरिवार की स्त्रियाँ मूर्ति की पूजा, जनाना कमरे में करती हैं।

४. इसके पश्चात् प्रतिमा को जुलूस में सम्मिलित होने के लिए प्रांगण में ले जाया जाता है।

५. हज़ारों दर्शक बड़ी अधीरता से भगवती की एक झलक पाने के लिए लालायित हो उठते हैं।

६. लोगों की अच्छी ख़ासी भीड़ होती है। मार्ग के दोनों ओर, छतों पर हज़ारों ग्रामीण अपने पारम्परिक रंग–बिरंगे परिधानों में एकत्रित होते हैं।

७. पुरोहित द्वारा बताए गए शुभ मुहूर्त में, जुलूस का नेतृत्व निशान का हाथी (इसमें एक विशेष ध्वजा बाँधी जाती है) करता है। सुसज्जित हाथी, बैलगाड़ियाँ व रथ इस जुलूस को अत्यन्त ही मनोहारी बना देते हैं।

८. यह जुलूस फिर त्रिपोलिया द्वार से प्रस्थान करता है और तभी लम्बी प्रतीक्षा के बाद तीज प्रतिमा दृष्टिगोचर होती है। भीड़ आगे बढ़ प्रतिमा की एक झलक के रूप में आशीर्वाद पाना चाहती है।

९. जैसे ही जुलूस आँखों से ओझल होता है, भीड़ तितर–बितर होना आरम्भ हो जाती है। लोग घर लौटकर अगले त्योहार की तैयारी में लग जाते हैं।

१०. तीज, नृत्य व संगीत का उल्लास भरा पर्व है। सभी प्रसन्न हो, अन्त में स्वादिष्ट भोजन का आनन्द लेते हैं।

११. प्रकृति एवं मानव हृदय की भव्य भावना की अभिव्यक्ति तीज पर्व (कजली तीज, हरियाली तीज व श्रावणी तीज) में निहित है।

१२। इस त्योहार के आस–पास खेतों में ख़रीफ़ की बुवाई भी शुरू हो जाती है। अतः लोकगीतों में उस त्योहार को सुखद, सुरम्य और सुहावने रूप में गाया–मनाया जाता है।

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