जाने यन्त्र - प्रयोग

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yantra-tantra

जाने यन्त्र - प्रयोग

प्रारम्भिक नियम

जैसा कि प्रारम्भ में कहा जा चुका है, यन्त्र वास्तव में मंत्र का विकसित और चित्रात्मक  रूप होता है। यन्त्र की साधना तभी पूर्ण होती है जब यन्त्र की रचना शास्त्र-सम्मत विधि से की जाय, और उससे सम्बन्धित मन्त्र को निर्धारित संध्या में जपकर विधिवत् हवन-पूजन किया जाय।

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विभिन्न पत्रों की साधना में उनकी रचना भी निर्दिष्ट रहती है। इसी प्रकार अंकात्मक और शब्दात्मक सभी यंत्रो में शब्द और अंक लिखने का एक क्रम विशेष होता है अतः यन्त्र रचना के पूर्व उसकी रचना के सम्बन्ध में योग्य व्यक्ती से भली भांति समझ लेना चाहिए। सामान्यतः सभी यंत्रो के शब्द और अंक श्लोक क्रम , मंत्र क्रम अथवा गणना क्रम से लिखे जाते है।  कुछ यंत्रो मे कोष्ठक कम की प्रधानता होती है। अतः साधक के लिए उचित यही है कि ऐसे यन्त्रों की रचना-पद्धति किसी योग्य विद्वान साधक भली-भांति समझकर साधना में प्रवृत्त हो। गुरु का महत्व इसीलिए सर्वत्र स्वीकार किया जाता है कि वह ऐसी समस्याओं से निवारण का उपाय बता देता है

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यन्त्र रचता के सम्बन्ध में प्रयोजनीय वस्तुओं के लिए विशेष रूप में विधान किया गया है। तदनुसार उपादान प्रयोग करने पर ही यन्त्र रचना निर्दोष सफल होती है। प्रयोजन वस्तुओं के साथ-साथ साधक के रहन-सहन को भी प्रतिवन्धित किया गया है। यन्त्र-साधना के दिनों में साधक को सत्य-मायण, ब्रह्मचर्य, अक्रोध, सदाचार, देव-चिन्तन, फलाहार अथवा सात्विक भोजन ( एक बार ही ) का नियम अनिवार्य रूप में पालन करना चाहिए। साधना के दिनों में हुई किसी भी अनुभूति को किसी से कहना मंचित है। एकान्त, पवित्र स्थान, शुद्ध वायु, प्रकाश, शुद्ध-स्वच्छ और निर्दोष सामग्री के प्रति भी सजन रहना चाहिए।

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यन्त्र-लेखन में कुछ विशिष्ट पदार्थों की आवश्यकता होती है, अतः उन्हें प्रसज्ञानुसार पहले से लाकर रख लेना चाहिए, जैसे- भोजपत्र , तामपत्र , अष्टगन्ध, पञ्चगंध , यक्षकर्दम , कुंकुम, कपूर, केसर, कस्तूरी, चन्दन आदि  इसके अतिरिक्त जिस यन्त्र के लिए जिस वस्तु का निर्देश हो उसके लिए वही प्रस्तुत करनी चाहिए। मंत्र और तंत्र की भांति यन्त्र की साधना मे उदेश्य - भेद से काल विभाजन किया गया है।  अतः यन्त्र रचना और साधना के लिए उससे सम्बंधित समय निर्देश का भली भांति पालन करना चाहिए।  ज्ञातव्य है कियन्त्र साधना की सफलता मुख्या रूप से दो बिन्दुओ पर आधारित रहती है श्रद्धा और नियम निर्वाह इनमे एक भी शिथिल हो जाये , तो साधना निष्फल हो जाती है। 

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